अनूप नारायण सिंह
कहते हैं कि राजनीति का क्षेत्र अनिश्चतताओं से भरा होता है. राजनीति में कब कोई फ़र्श से अर्श पर और कब कोई अर्श से फ़र्श पर चला जाए इसका कोई ठिकाना नहीं. इस बात की बानगी सीवान में देखने को मिल रही है जहां कभी बिहार सरकार में मंत्री और विधायक रह चुके अजीत कुमार सिंह अब मुखिया बन कर संतोष कर रहे हैं. अजीत कुमार सिंह उर्फ़ मोहन बाबू.
1980 में सीवान के गोरेयाकोठी विधान सभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर पहली विधायक बने थे. अजीत कुमार सिंह 1990 में जनता दल से भी गोरेयाकोठी के विधायक बने और फिर 1990 से 1995 तक सूबे के श्रम नियोजन मंत्री के पद पर भी रहे. राजनीति के बदलते समीकरण के शिकार अजीत कुमार सिंह अब प्रदेश के बजाये गवंई राजनीति करने को मजबूर हैं. ये अलग बात है कि 1995 से लेकर अब तक वे लगातार गोरेयाकोठी पंचायत से मुखिया का चुनाव जीतते आ रहे हैं.गांव की राजनीति में जीत हासिल कर मोहन बाबू जहां खुश हैं वहीं उनकी पत्नी शंकुतला सिंह भी इसे राजनीति के उतार-चढ़ाव की बात कहकर अपने पति की ख़ुशी अपनी ख़ुशी भी जताती है. दरअसल,1971 में सबसे पहले अपने गांव से पंचायत चुनाव में जीत हासिल कर राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले अजीत कुमार सिंह उर्फ़ मोहन बाबू स्वतंत्र विचारधारा और विकास के प्रति उन्मुख रहे जिस कारण उन्हें अपने ही दलों में कोई खास जगह और सम्मान नहीं मिला.
टिकट की चाह में 1995 में राजद में भी शामिल हुए लेकिन टिकट नहीं मिलने से वापस पटना से अपने घर गोरेयाकोठी लौट आये और फिर से पंचायत का चुनाव लड़ गोरेयाकोठी पंचायत के मुखिया बन गए. अजीत कुमार सिंह ने इस बार के पंचायत चुनाव में भी 217 मतों से जीत हासिल कर गोरेयाकोठी के मुखिया पद पर अपना कब्जा बरक़रार रखा है. गौरतलब है कि बिहार की राजनीति में अपनी ही पार्टी की उपेक्षा के शिकार होने वाले अजीत कुमार सिंह पहले और इकलौते व्यक्ति नहीं है. लेकिन अपने दल से उपेक्षित होकर गवईं राजनीति में सफलता प्राप्त करने वालों में इन्होने वाकई में एक मिसाल कायम किया है.
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