( समीक्षा – अनुभव )
एक बार फिर आज बिहार बंद है। राज्य में लगातार हो रहे दुष्कर्म की घटना एवं मुजफ्फरपुर में हुए नंगे नाच के विरोध में वाम दल ने आज बिहार बंद का ऐलान किया है। जिसे राजद, कांग्रेस ,हम ,समाजवादी पार्टी और शरद यादव के लोकतांत्रिक जनता दल ने भी अपना खुला समर्थन दिया है । राजधानी पटना सहित अन्य जगहों के कई निजी विद्यालयों ने सुरक्षा के मद्देनजर स्कूलों में छुट्टी की घोषणा कर दी है ।राजधानी पटना के कई बाजार बंद हैं। कहने को तो आपातकालीन सेवाओं को बंद से बाहर रखा गया है, लेकिन व्यवहारिक रूप से ऐसा हो नहीं पाता है। बंदी पहले भी हुई है, पहले भी कई बार विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी – अपनी राजनीति चमकाने के लिए बिहार बंद करवाया है। हर बार बंदी के बाद हिंसक झड़प,गाड़ियों की तोड़ फोड़ सहित आमजन को हुई परेशानी की सूचना मिलती है। छात्रों, मरीजों, यात्रियों और कई अन्य आम लोगों को परेशानी की सूचना मिलती है ।लोग अपना आवश्यक कार्य छोड़, घर के बाहर निकलना पसंद नहीं करते।ये बात सौ फीसदी सच है कि मुजफ्फरपुर कांड की जितनी भी निंदा की जाए वो कम है। उस घिनौने कार्य में शामिल संरक्षक, नेता और अधिकारियों को जो भी सजा दी जाएगी वह कम होगी।पूरा राज्य ही नहीं, जिस किसी ने भी इस कांड के बारे में सुना वो इन्हें फांसी के तख्ते पर लटकते देखना चाहता है।लेकिन यह बात समझ से परे है कि यह बंदी किसके भले के लिए की जाती है ?
बंदी ज्यादातर सरकार के खिलाफ होती है। जबकि परेशान आम जनता होती है। सरकार चैन से अपने घरों में सोती रहती है और आम जनता का नुकसान होता है। बंद समर्थक हमेशा आम जनता को ही नुकसान पहुंचाते हैं। आज की बंदी महिलाओं की सुरक्षा और सरकार के दो मंत्रियों की बर्खास्तगी और मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय गृह में हुए घटना के विरोध में किया गया है।
क्या आज के बिहार बंद से प्रदेश की महिला सुरक्षित हो जाएगी ? क्या आज के बंदी से राज्य सरकार के दोनों मंत्री बर्खास्त हो जाएंगे ? क्या आज की बंदी से मुजफ्फरपुर के दोषियों को सजा मिल जाएगी ? नहीं कदापि नहीं।तो फिर क्यों न सरकार का विरोध करना है तो विधानसभा का घेराव किया जाए, सचिवालय का घेराव किया जाए, मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रियों का घेराव किया जाए। जिन मंत्रियों के बर्खास्तगी की माँग है उनके आवास का घेराव किया जाए, उन्हें नजर बंद कर दिया जाए।
इस तरह की बंदी से, सड़क और रेल मार्ग जाम करने से सिर्फ और सिर्फ आम लोग परेशान होते हैं ना कि सरकार। बेहतर होता कि बंद समर्थक अपने विरोध के लिए कोई सार्थक तरीका निकालते, जिससे आम जनता को परेशानी भी नहीं होती और वो अपना विरोध भी सरकार और जनता को दिखा पाते।