कमल की कलम से – आइये आज बताते हैं हिज्रों के खानकाह यानी किन्नर समुदाय के कब्रगाह के बारे में

हेमेंदु कमल

आज हम आपको एक ऐसी दुनियाँ में ले जा रहे हैं जो अद्भुत ही नहीं बल्कि मायानगरी से कम नहीं।
हम लिए चलते हैं आपको दिल्ली के महरौली में स्थित हिज्रों के खानकाह यानी किन्नर समुदाय के कब्रगाह को।

दुनियाँ में बहुत से ऐसे रहस्य हैं , जिनके बारे में लोग नहीं जानते हैं।
ऐसा ही एक समाज है किन्नर समाज , जो आज भी लोगों के लिए एक रहस्य बना हुआ है। भारत के 2 लाख किन्नर हैं जिनके बारे में लोग जान ने को उत्सुक रहते हैं।
इनके रीति-रिवाज आम लोगों से काफी अलग होते हैं।
आज हम आपको किन्नरों की शव यात्रा के बारे में बता रहे हैं।
इसके बारे में जानकर आप अचंभित हो जाएंगे।
आपलोगों को ये बिल्कुल ही पता नहीं होगा कि जब किसी किन्नर की मौत होती है तो उसका अंतिम संस्कार बहुत गुप् चुप तरीके से किया जाता है।

हेमेंदु कमल

किन्नर समुदाय में शव को जलाया नहीं जाता बल्कि उसे दफना दिया जाता है। इनकी शव यात्रा सिर्फ रात में ही निकाला जाता है।
शवयात्रा से पूर्व किन्नर के शव को जूते और चप्पलों से पीटा जाता है।इसके पीछे मान्यता यह है कि इससे उसका पश्चतताप पूरा होता है।
इनकी मौत होने पर पूरा समुदाय एक हफ्ते तक भूखा रहता है।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि किसी भी किन्नर की मौत हो जाने पर समुदाय दुखी नहीं होता , बल्कि खुशियाँ मनाता है।
इसके पीछे की मान्यता ये है कि उस किन्नर को इस नर्क रूपी जीवन से छुटकारा मिल गया है।

तो चलिए हम चलते हैं उनके इसी खानकाह यानि मजार पर।
यकीन मानिये ये जगह ऐसे संकरे और लंबी दुकानों की श्रेणी के मध्य बसा हुआ है कि यदि आपको पहले से पता नहीं हो तो यह आपको दिखता ही नहीं।

खानकाह के परिसर के बाहर एक छोटा सा लोहे का दरवाजा है।
जिस पर कभी भी ताला नहीं लगाया जाता।
अंदर एक पुरानी छोटी सी मस्जिद है जिसका रख-रखाव बहुत ही साफ सफाई के साथ किया जाता है जिसकी देखभाल भी किन्नरों द्वारा ही की जाती है।
इसके अंदर के बाहरी हिस्से में 50 किन्नरों की कब्रें हैं। बताते हैं कि उन्हें लोदी वंश के शासनकाल के दौरान 15 वीं शताब्दी में दफनाया गया था।

इनके अलावा थोड़े ऊंचे स्थान पर एक कब्र है जो मियाँ साहेब या हाजी साब की है। यह सबसे महत्वपूर्ण कब्र है।
अब यहाँ पर किसी को भी दफनाया नहीं जाता है।
यहाँ पर किन्नर गण गुरुवार को दुआ के लिए आते हैं। उस दिन यहाँ उनकी भीड़ देखने को मिलती है।
ये यहाँ अकेले भी फूल माला चढ़ा दुआ करते और मन्नत माँगते है।

ये लोग जब भी यहां आते हैं तो सूफी संत अलाउद्दीन बख्तियार काकी की मजार के बाहर मौजूद फकीरों को खाना खिलाते हैं और उन्हें कपड़ें बांटते हैं।

इस खानकाह के बाहर दरबाजे से सटे दुकानदार ने बताया कि इस स्थान का मालिकाना हक किन्नर पन्ना हाजी के पास है। जो कभी कभी किराया वसूलने आते दिख जाते हैं।
यहां के आसपास की जितनी भी दुकानें हैं उनके किराये आज भी महज 100 रुपये प्रति माह हैं।

आपको बताते चलें कि अब किन्नरों को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता मिल गई है अतः उनके लिए Third Gender शब्द का इस्तेमाल होता है।

यहाँ आप दो रास्तों से आ सकते हैं। एक अंधेरिया मोड़ के तरफ से जहाज महल होते हुए। दूसरा महरौली बस टर्मिनल की तरफ से। इन दोनों छोर के बीच में है ये खानकाह।

निकटवर्ती मेट्रो स्टेशन कुतुबमीनार और बस स्टैंड अंधेरिया मोड़ या महरौली बस टर्मिनल है। बस संख्या 717 , 615 , 605 , 543 यहाँ से गुजरती है।

आप भूल कर भी अपनी सवारी से न जायें क्योंकि यहाँ कार पार्किंग की कोई जगह नहीं है।

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