नई दिल्ली-सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ आधार, दागी नेताओं के चुनाव लड़ने, समलैंगिकता और सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश जैसे आठ संवेदनशील मुद्दों पर आज से सुनवाई शुरू करेगी. इन तमाम मुद्दों और याचिकाओं में उठाए गए सवालों पर हमारा संविधान मौन है.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ के अन्य जजों में जस्टिस एमएन खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एके सीकरी शामिल हैं. संविधान पीठ में सीनियर जजों को शामिल करने को लेकर उठाए गए विवाद का इस पर असर नहीं है. क्योंकि में से एक को भी इस पीठ में शामिल नहीं किया गया है.
आधार में निजता का उल्लंघन?
आधार मामले में तो याचिकाकर्ता हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस के पुट्टस्वामी हैं. संविधान पीठ तय करेगी कि क्या आधार में दी गई जानकारी किसी भी नागरिक के निजता के अधिकार का उल्लंघन है? अगर कोई निजी कंपनी या सरकारी उपक्रम अपने उपभोक्ताओं का आधार से हासिल डाटा लीक करती है तो सजा का प्रावधान क्या होगा?
समैलिंगकता अपराध या नहीं?
संविधान पीठ समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में लाने वाली धारा 377 पर कोर्ट के फैसले की समीक्षा भी करेगी. क्योंकि आईपीसी की ये धारा दो वयस्क समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंध को अपराध मानती है जबकि आधुनिकता, समानता के अधिकार और स्वच्छंदता की दुहाई देने वाले इसे खत्म करने की दलील दे रहे हैं.
दागी नेताओं का भविष्य
संविधान पीठ के सामने एक और मामला चार्जशीटेड नेताओं या जनप्रतिनिधियों के अंतिम फैसला आने तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का भी है.
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश
आठ मामलों में केरल के मशहूर सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल के बीच की बच्चियों और महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी हटाने का मामला भी है. याचिका में कहा गया है कि ये रोक लैंगिक आधार पर भेदभाव है. जबकि इस रोक के समर्थक सदियों पुरानी परंपरा की दुहाई देते हैं.
पारसी महिला के अधिकार
एक और मामला पारसी महिला के गैर पारसी से विवाह करने पर धर्म की स्थिति पर विचार करने का भी है. अभी महिला गैर पारसी से विवाह करने पर धर्म और धार्मिक अधिकारों से वंचित कर दी जाती है. यानी विशेष विवाह कानून के प्रावधानों पर कोर्ट विचार करेगी.
लॉयल्टी में महिला भी दोषी?
परस्त्रीगमन यानी एक पत्नी के रहते दूसरी महिला से अवैध संबंधों में पुरुष को अपराधी माना जाता है. आईपीसी की इस धारा को संवैधानिक घोषित करने के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों पर फिर से विचार होगा.
दिलचस्प ये है कि बरसों पहले चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने इस धारा को वैध घोषित करते हुए कहा था कि इससे संविधान का कोई उल्लंघन नहीं होता. लेकिन उसी को चुनौती देने वाली याचिका को जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे और सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले पर फिर से विचार के लिए स्वीकार किया है.
उपभोक्ता और बिक्री कर का मामला
अन्य दो मामलों में उपभोक्ता मामले में जवाब देने के लिए समय सीमा तय करने और बिक्री कर से संबंधित दो याचिकाएं भी शामिल हैं.