जब सोनिया गांधी के निर्देष पर लालू प्रसाद के खिलाफ आय से अधिक सम्पति मामले को सीबीआई ने हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक गए। वही नीतीश कुमार आज तेजप्रताप और तेजस्वी यादव की बेनामी सम्पति के खिलाफ कार्रवाई करने में न केवल बेचारे हो गए हैं बल्कि उनका बचाव भी कर रहे हैं। लालू प्रसाद की 2006 में अधोषित 46 लाख की सम्पति आज 10 वर्षों में बढ़ कर एक हजार करोड़ रुपये हो गई है, मगर राज्य सरकार उसे जब्त करने व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है।
डीए केस (Disproportionate Case) में लालू प्रसाद ने कहा कि दहेज में मिली एक बाछी के बच्चों से 70 गायें हुईं जिसके दूध और दही को बेच का उन्होंने अतिरिक्त सम्पति अर्जित किया है। केन्द्र की कांग्रेस सरकार का लाभ उठा कर लालू प्रसाद ने आयकर अपीलीय प्राधिकार और सीबीआई विषेष कोर्ट के स्पेशल पीपी व जज तक को बदलवा मनोनुकूल लोगों को मनोनीत करा कर मामला खारिज करा लिया।
क्या मुख्यमंत्री बिहार विषेष न्यायालय अधिनियम 2009 जिसके तहत भ्रष्टाचारियों की सम्पति जब्त करने का प्रावधान है, तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत इन दोनों के खिलाफ आय से अधिक सम्पति का मामला दर्ज कर बिहार की छवि खराब कर रहे दोनों मंत्रियों को बर्खास्त करेंगे?