आपने आम के आम गुठलियों के दाम वाली कहावत तो जरूर सुनी होगी। अब इस कहावत को आप बिहार में उत्पादित होने वाली मछलियों के संदर्भ में भी लागू कर सकते हैं।
जी हम बात कर रहे हैं बिहार में उत्पादित होने वाली है मछलियों की जिसके चोईया को खरीदने में जापान की कई कंपनियां उत्साह दिखा रही है। प्राप्त सूचना के अनुसार इस चोईया से प्रोटीन का उत्पादन होना है। बिहार से मछली का चोइयां (फिश स्कैल) जापान भेजा जाएगा। इससे राज्य के मछुआरों को सालाना 50 करोड़ से अधिक मिलने की उम्मीद है।
इसके लिए बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ (कॉफ्फेड) ने जापानी कंपनी निजोना कारपोरेशन से करार किया है। रोहू, कतला, मृगल, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प का चोइयां भेजा जाएगा। इन मछलियों में 2 प्रतिशत सूखा चोइयां निकलता है। 70 रुपए प्रति किलो की दर से जापानी कंपनी खरीदेगी।
इसका उपयोग दवा और खाद्य पदार्थ के साथ ही आभूषण बनाने में होता है। हृदय, फेफड़ा, स्कीन आदि की दवा इससे बनाई जाती है। जापान में लोग मछली की चोइयां से बने खाद्य पदार्थ का उपयोग बहुत चाव से करते हैं। जापान में मछली की चोइयां की कीमत लगभग 1000 रुपए किलो है।
कॉफ्फेड के एमडी ऋषिकेष कश्यप ने कहा कि मछुआरों से मछली का चोइयां लेकर जापानी कंपनी को बेचने का करार हुआ है। जापानी कंपनी प्रति किलो 70 रुपए देगी। इसमें मछुआरों को लगभग 53 रुपए प्रति किलो कीमत मिलेगी। बिहार में 2017-18 में 5.87 टन मछली का उत्पादन हुआ था। यहां 6.42 टन खपत है। उत्पादन और बिक्री के अनुसार राज्य में 12 हजार 840 टन मछली चोइयां मछुआरों से ली जा सकती है। लाभ का हिस्सा मछुआरों 75 प्रतिशत और कॉफ्फेड को 25 प्रतिशत मिलेगा।
प्राप्त सूचना के अनुसार अभी तक बिहार में उत्पादित मछलियों के 2 टन से ज्यादा चोईया जापान खरीद चुका है मछली के चोईया से प्रोटीन का निर्माण किया जा रहा है।