पटना वाले आनंद भाई यानी गणितज्ञ आनंद कुमार की बायोपिक फिल्म सुपर थर्टी 12 जुलाई को दुनिया भर के सिनेमाघरों में रिलीज़ हो रही है. फ़िल्म आनंद कुमार पर आधारित है उनके जीवन से जुड़े कई अनूठे रहस्य पर से पर्दा हटेगा इस बीच आनंद कुमार ने बहुत ही मार्मिक आलेख अपने फेसबुक पोस्ट पर डाला है जिसमें उन्होंने अपने पिता से जुड़ी यादें और अपने बचपन के संघर्ष को भी साझा किया है आप भी पढ़े
कल दुनिया के तमाम सिनेमा घरों में मेरी बायोपिक “सुपर 30 ” रिलीज़ हो जाएगी और आज मुझे लग रहा है कि जैसे आसमान से मेरे स्वर्गीय पिताजी श्री राजेंद्र प्रसाद मुस्कुराते हुए मुझे देख रहें हैं और कह रहें हों कि बेटा आज मैं बहुत खुश हूँ | बहुत ही खुश हूँ | इतना, कि मैं बता भी नहीं सकता | लेकिन तू अभी और आगे बढ़ | मंजिल तो अभी तेरी बहुत ही दूर है | बेटा, मुझे पता है फिल्म रिलीज़ के बाद जो सम्मान मिलेगा वह सम्मान सिर्फ तुम्हारा नहीं होगा | तुम तो सिर्फ माध्यम मात्र हो | यह देश के उन तमाम शिक्षकों का सम्मान है जो अपने विद्यार्थियों के सफलता के लिए दिन-रात एक किये रहते हैं |
तुम्हे पता हैं न बेटा कि आज से लगभग 55 साल पहले जब मैं 10 वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की थी और तब तेरे दादाजी स्वर्गीय श्री कामता प्रसाद ने एक सपना देखा था । उनका सपना था अपने बेटे को इतना पढ़ा देना ताकि उसे कभी दाल-रोटी की कमी न हो | पटना साइंस कॉलेज जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में एडमिशन तो मुझे मिल गया था | लेकिन फकाकशी की जिंदगी ब्यतीत करने वाले तुम्हारे दादाजी के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वे अपने बेटे के होस्टल का खर्च वहन कर सके | मजबूरन मेरे पिताजी ने मुझे पटना में रमेश शर्मा के परिवार को यह कहकर सुपुर्द कर दिया कि मेरा बेटा आपके बच्चों को पढ़ायेगा और आप इसे रहने- खाने का आसरा दे दें | आज भी मेरे लिए बेटा उन दिनों की घटनायों की कल्पना मात्र करना कितना असहनीय है, मैं बता नहीं सकता, जब मैं कपकपाती सर्दी में बगैर रजाई के रतजगा किया करता था और बिना स्वेटर के कॉलेज जब जाता था तब मेरे शिक्षक बोलते थे कि हीरो बनते हो गर्म कपडे क्यों नहीं पहनते | शरीर झुलसा देने वाली गर्मी में भी बस भाड़े और साइकिल के आभाव में कॉलेज के लिए मीलों की यात्रा पैदल ही किया करता था | और फिर एक दिन आखिर मैं हार ही गया और पैसे के आभाव में बगैर पढाई पूरी किये मुझे नौकरी करनी पड़ी |
एक बार और फिर मैं हारा जब मुझे पैसे के आभाव में पढाई छूटने का दर्द का अनुभव दुबारा हुआ और वह भी अपने बेटे की पढाई छूटने का | और उसे शायद तब मेरे लिए बर्दाश्त कर पाना संभव नहीं हो सका जब तुम्हारा दाखिला कैंब्रिज में होने के बावजूद तुम्हारा वहाँ जाना संभव नहीं हो पा रहा था | और मैं बड़ी कम उम्र में ही तुमलोगों को अकेले छोड़कर इस दुनिया से चला गया | “ बेटा पैसे के आभाव में पढाई छूटने का दर्द बहुत ही कष्टकारी होता है और भगवान ऐसा कष्ट किसी को न दे ” | आज भी ये बातें मेरे दिलो-दिमाग को झकझोरते रहती हैं |
और बेटा आनंद, मुझे यह भी पता है कि तुम मेरे अधूरे सपनों में रंग भरना चाहते हो यही तो कारण है सुपर 30 को तमाम परेशानियों तथा चुनौतियों के बावजूद जारी रखे हुये हो |
हाँ, ये सच है कि तुम अगर ऐसे ही आगे बढ़ते रहोगे तब परेशानियाँ भी आयेंगी | समाज में कुछ ऐसे निराश, हताश, निठल्ले और नकारात्मक सोच से भरे लोग भी होंगे जो तेरी सफलता से जलेंगे | वे तुम्हें रोकने का काम करेंगे | बदनाम करने का प्रयास करेंगे | फालतू बातों में उलझाने का प्रयास करेंगे | और तो और, कुछ ऐसे लोग जो उम्र बीत जाने के बाद भी अपनी पहचान नहीं बना सके, सिर्फ इसीलिए ऐसा करेंगे क्योंकि वे तुम्हारा विरोध करके के कुछ अपना नाम बना लें | लेकिन तुम इनलोगों की परवाह कभी नहीं करना | ऐसे लोग कभी भी गुस्से के पात्र नहीं होते हैं | इस तरह के हारे हुए इन्सान दया के पात्र होते हैं | माफ़ कर देना इन लोगों को | और आगे बढ़ते रहना | बिना रुके | बिना थके |
बेटा, भले ही आज मैं इस दुनिया में नहीं हूँ | लेकिन क्या तुम्हें पता है कि तुम कितने सौभाग्यशाली हो | इस दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो मेरी गैर-हाजरी में तुम्हारी सलामती के लिए तुम्हे दुआयें देते हैं | वे वही लोग हैं जो लोग कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी तुम्हारा साथ दिया है | तुम्हारा छोटा भाई प्रणव तो मुसीबतों में चट्टान बनकर तेरे सामने खड़ा हो जाता है | परिवार के तमाम सदस्य और तुम्हारे दोस्त तुम्हारा कितना ख्याल रखते हैं तुम्हारा | गुरुजनों का आशीर्बाद प्राप्त है तुम्हें | और भला इससे भी ज्यादा किसी इन्सान को और क्या चाहिए | बेटा, मैं ऐसे तमाम लोगों का तुम्हारे तरफ से शुक्रिया कैसे अदा करूँ, मेरे लिए समझ पाना मुश्किल हो रहा है |
और बेटा तुम अपने अंतिम साँस तक कुछ ऐसा प्रयास जरुर करना, सुपर 30 को इतना बड़ा करना, इतना बड़ा कि भारत देश के किसी भी निर्धन माँ-बाप को यह कष्ट न उठाना पड़े कि पैसे के आभाव में उसके बेटे-बेटियों कि पढाई छूट जाये |
बेटा अब मैं तुम्हारी दुनिया में नहीं हूँ | अब तुम मुझे भले ही नहीं देख सकते हो | लेकिन आसमान की उचाईयों से मैं हमेशा तुम्हें देखते रहता हूँ | अच्छा लगता है | मेरा आशीर्बाद सदैव तुम्हारे साथ है | देखना बेटा यह फिल्म और इस फिल्म में दिखाये तुम्हारे संघर्ष को दुनिया सदा याद रखेगी | खुश रहो बेटा | सदा खुश रहो | बस सिर्फ याद रखना कि कभी हारना नहीं | कभी रुकना नहीं | आज तेरे पिता को तुम पर गर्व हो रहा है ……………….