अभी मेरी ऐसी उम्र नहीं कि शादी करूं और घर बैठ जाऊं : अक्षरा सिंह

अक्षरा सिंह ने भोजपुरी फिल्मों से अपना कैरियर शुरू किया था. इस के बाद वे हिंदी सीरियल भी करने लगीं. जल्दी ही वे दक्षिण भारतीय फिल्मों में भी दिखाई देंगी. बिहार की रहने वाली अक्षरा सिंह ने अपनी स्कूली पढ़ाई पटना में की थी. उन की मां नीलिमा सिंहऔर पिता विपिन सिंह खुद ऐक्टिंग के क्षेत्र में ही हैं, इसलिए अक्षरा सिंह को लगा कि क्यों न वे भी इसी क्षेत्र में हाथ आजमाएं. अक्षरा सिंह ने बहुत कम समय में भोजपुरी सिनेमा में अपनी एक अलग पहचान बना ली है. इन फिल्मों में ‘सत्यमेव जयते’, ‘रामपुर का लक्ष्मण’, ‘देवदास’, ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’, ‘बजरंग’, ‘एक बिहारी सौ पर भारी’, ‘कालिया’, ‘बिगुल’ और ‘कसम गंगा मैया की’ शामिल हैं. फिल्मों के अलावा अक्षरा सिंह ने ‘सर्विस वाली बहू’ और ‘काला टीका’ जैसे हिंदी सीरियलों में भी काम किया है.

पेश हैं, अक्षरा सिंह से हुई बातचीत के खास अंश :आप फिल्मों व सीरियलों में एकसाथ कैसे काम कर लेती हैं?

मुझे कम समय में ही भोजपुरी फिल्मों में पहचान मिल गई है. अब मैं पटना से मुंबई शिफ्ट हो गई हूं. यहीं कालेज में कौमर्स से अपनी पढ़ाई पूरी की है. जब मैं ऐक्टिंग में अपना कैरियर बनाने के लिए मुंबई आई थी, तब मन में तमाम तरह के सवाल थे. अब कैरियर को एक दिशा मिल गई है. आगे भी फिल्मों में अच्छा काम करना है, जिस से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन हो सके. मैं ने फिल्मों के साथसाथ हिंदी सीरियल भी किए हैं. अब लोग मुझे घरघर में पहचानते हैं. दक्षिण और हिंदी फिल्मों में भी काम करने की योजना है. वैसे, फिल्मों और सीरियलों दोनों में एकसाथ काम करने के लिए समय को मैनेज करना पड़ता है.फिल्म और सीरियल के काम में क्या फर्क है?

सीरियल में तो आप दर्शकों को रोज दिखते हैं. सीरियल में ज्यादा पहचान बनती है. यह जरूर है कि इस में मिलने वाले रोल से टाइप्ड होने का खतरा रहता है. ऐक्टिंग में ज्यादा हुनर टैलीविजन में दिखता है. सीरियलों में दिखाए जाने वाले निगेटिव रोल भी काफी अहम होते हैं. दर्शक इन को खूब पसंद करते हैं. कई बार तो लोग कलाकार को भूल कर किरदार को ही याद रखते हैं.

लड़कियों के लिए फिल्म लाइन को महफूज नहीं माना जाता है. आप क्या सोचती हैं?

फिल्म लाइन में लड़कियां महफूज नहीं हैं, यह गलत सोच है. पहले यह सोच हर आम परिवार के मन में बैठी हुई थी. इसी वजह से वे अपने घर की लड़की को यहां भेजने से डरते थे. उन का डर पूरी तरह से गलत भी नहीं है. छोटे शहरों से आनी वाली लड़कियों के मन में अपार सपने होते हैं. उन सपनों को पूरा करने का भरोसा दिला कर कोई भी उन को ठग सकता है. पर अब हालात बदल गए हैं. लड़कियों को भरमाना अब आसान नहीं है.आजकल भोजपुरी फिल्मों में आने वाली लड़कियां कई तरह के विवादों में उलझ जाती हैं. उन को ऐसे हालात से कैसे बचना चाहिए?

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में कामयाब होने के बाद छोटे शहरों की लड़कियों को ऐक्टिंग के बेहतर मौके मिलने लगे हैं. आज बड़ी तादाद में भोजपुरी फिल्में बनने लगी हैं. इस के चलते फिल्म इंडस्ट्री में आम चेहरेमो हरे वाली लड़कियों की जरूरत बढ़ रही है. जरूरत इस बात की है कि लड़कियां खुद पर भरोसा करें और शौर्टकट रास्ता न अपनाएं. इस के साथ ही वे ऐक्टिंग को सीखें. केवल सुंदर चेहरा और खूबसूरत शरीर होने से काम नहीं चलता, हुनर भी होना चाहिए.

आप की शादी को ले कर कई तरह की अफवाहें उड़ती रही हैं. इन में कितनी सचाई है?

अभी तो मेरी ऐसी उम्र नहीं है कि मैं शादी करूं और घर बैठ जाऊं. ऐक्टिंग की दुनिया में बहुत काम करना है. शादी की कोई जल्दी नहीं है.नए शहर में लड़कियों के सामने कई बार अजीब हालात पैदा हो जाते हैं. वे उन का मुकाबला कैसे करें?

मैं जब मुंबई आई थी, तो लोगों ने बहुत डराया, पर मुझे अपने पर भरोसा था. मैं जब पटना में थी, तब गलत हरकत करने वाले कई लड़कों की क्लास ले चुकी थी. अब लोग लड़कियों का भावनात्मक रूप से शोषण करने की सोचते हैं. ऐसे में लड़कियों को किसी के भी साथ ऐसे संबंध बनाने से पहले उस की सचाई को जरूर समझ लेना चाहिए. अगर खुद की समझ में न आए, तो वे अपने किसी साथी, सहेली या घर के किसी सदस्य से बातचीत कर के समझने की कोशिश करें. अपनों से झूठ नहीं बोलना चाहिए. झूठ बोलने वाली लड़कियां ही ऐसे मामलों में फंस जाती हैं.

मुंबई आ कर आप घर का क्या क्या याद करती हैं?

मैं सब से ज्यादा घर का बना खाना याद करती हूं. हमेशा बाहर खा नहीं सकती और कोई अच्छी खाने की डिश बनानी मुझे आती नहीं. मुंबई में समय की कमी होती है. देर तक काम करना होता है. ऐसे में खाना ऐसा हो, जो जल्दी बने और सेहत के लिए भी अच्छा हो.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *