अटूट जन आस्था का महापर्व छठ

पटना से अनूप नारायण सिंह

लोक आस्था का महापर्व चैती छठ नहाय-खाय के साथ आज से प्रारंभ हो गया। गुरुवार को खरना होगा। शुक्रवार को व्रती भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य प्रदान करेंगे। शनिवार को दूसरा अर्घ्य देने के साथ छठ महापर्व समाप्त हो जाएगा। इस त्योहार में देवी षष्ठी माता एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों ही व्रत रखते हैं. इसमें गंगा स्नान का महत्व सबसे अधिक होता हैं. लोक मान्यताओं के अनुसार सूर्य षष्ठी या छठ व्रत की शुरुआतरामायण काल से हुई थी. इस व्रत को सीता माता समेत द्वापर युग में द्रौपदी ने भी किया था. छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं. इस दिन महाभारत से जुड़ी षष्टी देवी की कथा भी सुनी जाती है, जो इस प्रकार से है…

महाभारत काल से हुई शुरुआत…

एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की. कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था. वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता . सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था. आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है. छठ पर्व के संदर्भ में एक कथा यह भी है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा. तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया. लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मईया का गहरा संबंध है. लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी. उत्तर भारत में महापर्व छठ धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन रांची में छठ पूजा का खास महत्व है. यहां के नगड़ी गांव में छठव्रती ना तो नदी और ना ही तालाब में अर्घ्य देते है बल्कि एक सोते के पास छठ पूजा होती है. दरअसल मान्यता है कि इसी सोते के पास द्रौपदी सूर्योपासना किया करती थी और सूर्य को अर्घ्य भी दिया करती थी. ऐसा माना जाता है कि वनवास के दौरान पांडव झारखंड के इस इलाके में काफी दिनों तक ठहरे थे. कहते हैं कि एक बार जब पांडवों को प्यास लगी और दूर-दूर तक पानी नहीं मिला तब द्रौपदी के कहने पर अर्जुन ने जमीन में तीर मारकर पानी निकाला था. मान्यता यह भी है कि इसी जल के सोते के पास द्रोपदी सूर्य को अर्घ्य देती थी. सूर्य की उपासना कि वजह से पांडवो पर हमेशा सूर्य का आशीर्वाद बना रहा. इसी मान्यता कि वजह से आज भी यहां छठ धूमधाम से मनाई जाती है.

ये कहानियां भी प्रचलित हैं

यहां से थोड़ी दूर पर हरही गांव है. मान्यता है कि यहां भीम का ससुराल था. भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच का जन्म भी यहीं हुआ था. एक दूसरी मान्यता के मुताबिक महाभारत में वर्णित एकचक्रा नगरी नाम ही अपभ्रंश होकर अब नगड़ी हो गया है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *