सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंद माता यशस्विनी॥
शक्ति के इस स्वरूप की उपासना पांचवें दिन की जाती है. देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कन्द यानि भगवान कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जानते हैं. यह शक्ति व सुख का एहसास कराती हैं. ये सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसी कारण इनके चेहरे पर तेज विद्यमान है. इनका वर्ण शुभ्र है.
भगवान स्कंद (कार्तिकेय) बाल रूप में स्कंदमाता की गोद में बैठे हैं. यही देवी का स्वरूप है जो साफ दर्शाता है कि मां वात्सल्य से ओतप्रोत हैं. यह हमारे भीतर कोमल भावनाओं में अभिवृद्धि करता है. आंतरिक व बाह्य जीवन को पवित्र व निष्पाप बनाते हुए आत्मोन्नति के मार्ग पर अग्रसर करता है.
मां स्कंदमाता की उपासना से मन की सारी कुण्ठा जीवन-कलह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है. मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है. साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग अपने आप ही खुल जाता है.