विशेषता – माँ पचपतरा वनदेवी, छपरा जिले के गरखा प्रखंड में है आस्था और आकर्षण का केंद्र

आज आपको हम लिए चलते हैं छपरा जिले के गरखा प्रखंड में जहां हमने तलाशा है इतिहास के पन्नों से एक ऐसे आस्था के केंद्र को जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। माँ पचपतरा वनदेवी मन्दिर गड़खा प्रखण्ड मुख्यालय से किमी दुरी दक्षिण 15 गाँव के बीच चेवर में स्थित हैं।

पचपतरा गांव में मात्र माँ की मंदिर और एक पीपल वृक्ष है। चारों तरफ से मंदिर 3 किमी के बाद ही कोई गांव मिलती हैं। फिर भी यहाँ सोमवार शुक्रवार और खास कर नवरात्रि में भक्तों की खूब भीड़ होती हैं।भक्त जो भी माँ से मांगते है माँ उनकी मनोकामनाए पूर्ण करती हैं।

माँ से जुड़ी कई रोचक कहानियां प्रसिद्ध है पहले माँ जड़ती माई के नाम से प्रचलित थीअब बनी वनदेवी

सन 2007 में सन्त श्रीधर दास जी महाराज के परम् प्रिय शिष्य बालयोगी मुरारी स्वामी बाल्य अवस्था में यहाँ आए। उस वक्त मंदिर के चारों तरफ जंगल था। दिन में भी साँप सियार व् अन्य जंगली जानवरों के बसेरा रहती था। वो उसी जंगल में सोने लगे और माँ की मंदिर बनाने की जिद पर अड़ गए। सन्त श्रीधर बाबा ने मंदिर निर्माण कार्य शुरू किया तो ग्रामीणों ने आ कर पूरी इतिहास बताई तो बाबा ने कहाँ की मंदिर बनेंगी। श्रीधर बाबा ने जड़ती माई का नामकरण वनदेवी माता के रूप में किया।

हजारो वर्ष पुराना है पीपल वृक्ष

पचपतरा में मंदिर में प्रांगण में स्थित पीपल वृक्ष हजारों वर्ष पुरानी है। 80-90 वर्ष के बुजुर्गों की माने तो वृक्ष को उनके पूर्वज भी इसी अवस्था में देखे थे। बीच चँवर में पड़ने वाले वृक्ष खेती किसानी के लिए बेहद उपयोगी है धूम में छाया लेते है। पशु पक्षियों सहित किसानों की प्यास बुझाने के लिए चापाकल भी लगी है।

माँ की मंदिर 15 गांवो टहलटोला, पंचभिड़िया, जिगना, जिल्काबाद, मठिया, बरबकपुर, कुचाह, मीनापुर, खदाहा, मजलिशपुर, पोहिया, फतनपुर पिरौना, पिरारी, सर्वादिह आदि गांवो और पांच पंचायतों मीरपुर जुआरा, पिरौना , भैसमरा, सरगट्टी और हसनपुरा के बीच में है। शायद इस लिए इस गांव के नाम पचपतरा पड़ा।

पचपतरा ऐसा गांव जहाँ सिर्फ माँ के घर है

गड़खा प्रखण्ड के नक्शा में पचपतरा गांव का थाना नम्बर है। एक ऐसा गांव जिसे लोग पहले बिना छान छपर अर्थात छत के गांव कहते थे। 15 गांव में बीच में पड़ने वाले गाँव पचपतरा में सिर्फ माँ के ही घर अर्थात मन्दिर है ग्रामीण बताते है कि यहाँ पर सैकड़ो वर्ष पूर्व गाँव हुआ करता था, पर महामारी बीमारी फैली और लोग पलायन कर गए तथा माँ यही रह गई।
अभी भी खेतों में खपर के टुकड़े मिलते है, जिससे यह सत्य प्रतीक होती है। माँ सभी भक्तों की मनोकामनाए पूर्ण करती थी, तो कुछ भक्तों द्वारा सुवर बकड़ी आदि पशुओं की बलि दी जाती थी।

नाग और विभिन्न प्रकार के सर्पो के बसेरा है 

सन 2007 में पूर्णतः रोक लगा दी, जिसके बाद से आस्था के नाम पर पशु हत्या पर लोग लगी। मन्दिर के आस पास में नाग और विभिन्न प्रकार के सर्पो के बसेरा है, पर जब भी कोई पूजा करने या पानी पीने जाता तो सर्प हट जाती ख्याति दूर दूर तक फैली लोग देखने आने लगे। लेकिन अब तक किसी को भी सर्प ने डंसा तक नही। आज भी प्रायः सर्प देखने को मिलती है।

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