
विनायक विजेता
पहले विधायक अनंत सिंह फिर पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन और अब राजद से निलंबित नवादा के विधायक राजबल्लभ प्रसाद को लेकर भाजपा के तेवर तल्ख हैं। खासकर विधान परिषद में विरोधी दल के नेता सुशील कुमार मोदी का। कानूनी प्रक्रिया के तहत राजबल्लभ को मिली जमानत को जिस तरह मोदी स्त्री जाति का अपमान और बिना किसी न्यायिक फैसले के जनता द्वारा चुने गए एक जन प्रतिनिध को दुष्कर्मी करार दे रहे हैं वह एक स्वस्थ राजनतिक परम्परा नहीं है। राजबल्लभ मामले को मोदी जिस तरह से स्त्रियों के सम्मान के साथ जोड़कर पेश कर रहें हैं तो स्त्रियों के प्रति उनका यह आदर भाव और सम्मान रुपम पाठक मामले में कहां चला गया था। पूरा देश जानता है कि रुपम पाठक ने 4 जनवरी 2011 को पूर्णिया के तत्कालीन भाजपा विधायक राजकिशोर केसरी की उनके आवास पर ही चाकू मारकर हत्या क्यों की थी। तब मोदी और उनकी पार्टी चूकि जदयू के साथ गठबंधन में सरकार चला रहे थे और तब मोदी खुद राज्य के उपमुख्यमंत्री थे इसलिए उन्हें तब अपने पार्टी के विधायक के कर्मों पर पर्दा ही डालना उचित समझा। इस कांड के बाद एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका रुपम पाठक ने यह बयान दिया था कि भाजपा विधायक राजकिशोर वर्ष- 2007 से ही उसके साथ दुष्कर्म कर रहे हैं। उनके खिलाफ उसने 2010 में स्थानीय थाना में शिकायत भी दर्ज करायी पर पुलिस ने कुछ नहीं किया। इसके बावजूद राजकिशोर केसरी जबरन उसका शारीरिक शोषण करते रहे जिससे उबकर उसने यह कदम उठाया। तब भाजपा चुप क्यों थी, तब मोदी चुप क्यों थे! क्या रुपम पाठक एक ऐसी बेबस महिला नहीं थी कि जिसने राजकिशोर केसरी के कारण अपना, अपने बच्चों और परिवार को बिखरता देखने का साहस के बदले एक अलग ही साहसिक कदम उठाया। इस मामले में आजीवन कारावास की सजा भोग रही रुपम पाठक का कसूर बस इतना था कि उसने जो भी किया अपनी अस्मत के बचाव के लिए किया। भले ही बाद में नयायिक फैसला जो आया हो। अब इससे इतर हम एक इरानी युवती रेहाना जेब्बारी और उसके पत्र की चर्चा करते हैं। रूपम पाठक की तरह रेहाना ने भी जबरन दुष्कर्म करने वाले एक शख्स की इरान में हत्या कर दी इस हत्या के आरोप में रेहाना लगभग सात साल जेल में रही और बीते वर्ष 25 अक्टूबर को उसे इरान की जेल में ही फांसी दे दी गई। रेहाना की रिहाई के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रयास हुए थे पर इरान के शख्त कानून के आगे सारे प्रयास विफल हो गए। तब जेल से ही रेहाना ने अपनी मां को एक पत्र लिखा था जिसमें उसने कहा था कि ‘ मां, इस दुनिया ने मुझे 19 साल जीने का मौका दिया। उस मनहूस रात को मेरी हत्या हो जानी चाहिए थी। मेरा शव शहर के किसी कोने में फेक दिया गया होता और फिर पुलिस तुम्हें मेरे शव को पहचानने के लिए लाती और तुम्हें पता चलता कि हत्या से पहले मेरा रेप भी हुआ था। मां तुमने ही कहा था कि आदमी को मरते दम तक अपने मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। मां, जब मुझे एक हत्यारिन के रूप में कोर्ट में पेश किया गया तब भी मैंने एक आंसू नहीं बहाया। मैंने अपनी जिंदगी की भीख नहीं मांगी। मैं चिल्लाना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं किया क्योंकि मुझे कानून पर पूरा भरोसा था।’ मां, तुम जानती हो कि मैंने कभी एक मच्छर भी नहीं मारा। अब मुझे सोच-समझकर हत्या किए जाने का अपराधी बताया जा रहा है। वे लोग कितने आशावादी हैं जिन्होंने जजों से न्याय की उम्मीद की थी!’ रेहाना कि तरह रुपम भी कोई पेशेवर कातिल नहीं थी यह जानते हुए भी भाजपा और उसके नेता तब खामोश रहे। रुपम पाठक द्वारा दिए गए बयान के पलट आपने और आपकी पार्टी ने गलत करार देकर रुपम को ही ‘ब्लैकमेलर’ साबित करने की कोशिश की थी तो राज्य की जनता राजबल्लभ पर लगाए गए उस कथित पीड़िता की बातों पर कैसे यकीन करे जिसके मेडिकल रिपोर्ट में ही उसे ‘संसर्ग की आदी’ करार दिया गया। जिस राजू सिंह पर दर्जनों लोगों से फर्जी जमीन के नाम पर करोड़ो रुपये ठगने के आरोप हैं, जिसने शादी के नाम पर दिल्ली की एक युवती का महीनो शरीरिक शोषण किया उस युवती को न्याय दिलाने में आपकी या आपकी पार्टी की क्या भूमिका रही! चाहे अनंत सिंह हो या शहाबुद्दीन या फिर राजबल्लभ प्रसाद अगर किसी ने अपराध किया है तो उसकी सजा कानून देगा। राजनीतिक बयानबाजी से न तो अदालत का मूड बदला जा सकता है और न ही माननीय न्यायधीशों या न्यायपालिका के फैसले। भारतीय कानून में हत्या या अन्य अपराध की कोई जगह नहीं है पर इसके लिए न्यायालय और कानून है। हर दल को पहले अपने गिरेबां में झांक कर कर ही बयान देना चाहिए! उन्हें इस पर चिंतन करनी चाहिए कि शहाबुद्दीन, अनंत, राजबल्लभ और रामा सिंह जैसे लोग किस पार्टी में में नहीं हैं। हर दल में ‘अनंत‘ हैं और हर दल में ‘दलदल।’
