प्रेम और सेवा किसी पद या समय का मोहताज नहीं – प्रभाष झा

अनूप नारायण सिंह की रिर्पोट

जन्म दिन – १२/०९/१९८२ , क्वालिफिकेशन – बी.कॉम, सी.ए., एम.बी.ए.
जन्म स्थान – मधेपुर (प्रखंड ), जिला – मधुबनी
पिता का नाम – स्वर्गीय श्री अरुण कुमार झा
बड़े भाई – Er. सुभाष झा (ओबेरॉय ग्रुप ऑफ़ होटल)
छोटा भाई – श्री विकास झा (रिलायंस रिटेल )

मधुबनी जिला के मधेपुर प्रखंड में जन्मे प्रभाष झा उर्फ पिंकू का बचपन भी गांव के एक सामान्य बच्चे जैसे ही था. तीन भाई में बिच वाला भाई , भोले-भाले के नाम से जाना और पुकारा जाता था .. एकदम सीधा साधा लड़का ..अभी भी याद आता है…एक ही कमरा..वही एकमात्र कमरा हमारे पांच सदस्य का बेड रूम.. रसोई रूम..बेड के निचे जलावन रखने का बंदोवस्त..काफी दिक्कत थी… वही बाल्यकाल में दूसरे के कोठा वाले छत पे पढाई और कभी कभी गर्मी के समय में बाबूजी और भाई के साथ वही सो भी जाते थे.. बाबूजी मिडिल स्कूल के गणित और विज्ञान के शिक्षक थे ..उनका वेतन ही एकमात्र पैसे का साधन और तीन बच्चे पढ़ने वाले.. कभी कभी तो ६ – ७ महीने तक सैलरी नहीं मिलता था ..सुदी पे पैसा लेने के सिवा और कोई रास्ता भी नहीं था … इतना सब होते हुए बाबूजी ने हम सब को कभी भी पढाई और स्वास्थ्य पर समझौता करना नहीं सिखाया.. लेकिन खुद मधुमेह की जटिल बीमारी को इस तप में मानो शिव जी की तरह जहर को पि लिए ताकि उनके बच्चे अमृत पि सके .. हम सब जब थोड़े सबल हुए और पूरा कोशिश किये बचाने का तब बहुत देर हो चुकी थी ..पैरालिसिस ..रेटिनोपैथी …और आखिरी में ब्रेन हेमरेज..साल २०१४ में स्वर्गवास हो गए.. कहते रहते थे – हेत सबकिछ लेकिन हम देख नै पायब ( होगा सबकुछ लेकिन देख नहीं सकूँगा).. एक मध्यम वर्गीय परिवार का सपना होता है पढ़ना , अच्छी नौकरी करना और अच्छी जिंदगी जीना ..लेकिन मानो मेरे अन्दर कुछ अलग सी बेचैनी रहती थी .. की दिखावा करके क्या होगा.. जो मन में आये और तार्किक लगा ..तो चुप नहीं बैठेंगे .. ऐसे ही एक घटना क्रम यद् आ रहा है .. जब मै अपने गावं के ही जवाहर उच्च विद्यालय में पढ़ते थे तो सरस्वती पूजा करने का भार मिला .. बोल दिए छात्र के साथ साथ शिक्षकों को भी चंदा देना चाहिए . बस क्या था शिक्षक भरक गए और अपना ज्ञान देने लगे .. बहुत मान मनोवल के बाद सुलह हो पाया..


बचपन में ऐसे ही कोई चलते फिरते एक ज्योतिष महाराज आये , हाथ देखा और बोले बिज़नेस में नाम करेगा. महज १२ साल का छोकरा क्या जाने बिज़नेस विजनेस …पूछने लगा अपने आस पास बिज़नेस क्या होता है और सबसे बड़ा पोस्ट क्या होता है.. पता चला की चार्टर्ड अकाउंटेंट ही सबसे शिखर …बस चल पड़े अपने मुकाम की ओर..एक बार मेट्रिक एग्जाम के बाद थोड़ा बाद विवाद भी हुआ.. पापा और बड़े भैया .. सुझाव दिए टॉपर हो ..कॉमर्स नहीं लेना चाहिए .. लेकिन दोनों ने मेरे बिश्वास और विचार का समर्थन करते हुए, और आसपास के लोगों के विरोध व उपहास को सहते हुए.. आखिकार १०+२ साइंस से करने के बाद सीए फाउंडेशन करने की सहमती दे दी.. पटना से सीए फाउंडेशन किये ..statistics में आल इंडिया टॉपर के साथ साथ बिहार व झारखण्ड के स्टेट टॉपर रहे और निकल पड़े देश की आर्थिक राजधानी मुंबई.. सी.ए. की आगे की पढाई करने..रास्ता आसान नहीं था. असली परीक्षा शुरु हो गयी ..सरकारी स्कूल से पढ़े थे ..साथ में मातृभाषा का प्रभाव (मदर टंग इन्फ्लुएंस) भी जोरो पर था ..लोग हस्ते थे साहेब..हिंदी भी ठीक से बोलने नहीं आता था.. अंग्रेजी की तो बात ही छोर दीजिये.. लेकिन कठिन परिश्रम और समपर्ण से तो मानो जन्म जन्मान्तर का रिश्ता था .. दिन भर नामी गामी कंपिनयो ( रिलायंस , भारती एयरटेल इत्यादि ) में आर्टिकल शिप और देर रात तक पढाई ..पीछे नहीं मुरे.. और महज २२ साल की उम्र में चार्टर्ड अकाउंटेंट जैसी कठिनतम परिक्षा में सफल हुए.. बाद में फुल टाइम बेसिस पर मैनेजमेंट की भी पढाई icfai business school से करने के बाद .. एक trainee से अपने कैरीयर की शुरुवात कर कॉर्पोरेट जगत में फाइनेंस के उच्चतम शिखर ग्रुप चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर के पद पर मात्र ३० वर्ष की उम्र में आसीन हुए..साथ ही साथ देश विदेश में नामचीन कम्पनियों जैसे की भारती एयरटेल , ओबेरॉय ग्रुप ऑफ़ होटल एंड रिसॉर्ट्स , लाइफस्टाइल रिटेल (लैंडमार्क रिटेल ग्रुप), अक्सिस डेंटल , डिश टीवी ग्रुप इत्यादि में अपना सेवा दिया.
इतना सब करने के बाद , एक छटपटाहट हमेशा से ही बनी रहती थी की आखिर जिस जगह से हम आये , और जिस गाव को हमने छोरा , उसको बदल नहीं सकते ..क्या हमें भी रिटायरमेंट का इंतजार करना पड़ेगा.. हम इतना सब पढ़ लिख के बस दिन रात अपने लिए , अपने परिवार के लिए ही हाय हाय कर रहे है. और आखिर वह पल आ ही गया जब अंदर की आह मेरी चाह का विशाल रूप ले लिया और कहा अब और नहीं .. बांकी की जिन्दगी दुसरो को बढाने के लिए , दुसरो को बनाने के लिए .. ३ जनुअरी २०१७ लास्ट डे था ..कॉर्पोरेट जिन्दगी का ..२ फेब्रुअरी २०१७ को नमामि मिथिला फाउंडेशन का जन्म हुआ ..  नमामि मिथिला फाउंडेशन (न.मि.फा.) एक रजिस्टर्ड गैर राजनितिक एवं गैर सरकारी संगठन है जो शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वरोजगार के माध्यम से एक सबल, सक्षम और स्वस्थ समाज व देशनिर्माण के लिए पूर्ण संकल्पित है।



श्री प्रभाष चंद्र झा न.मि.फा.  के संयोजक है और “ज्ञानोदय” प्रोजेक्ट इनका ब्रेन चाइल्ड है| श्री झा का कहना है की प्रेम और सेवा किसी पद या समय का मोहताज़ नहीं| श्री झा ने महज २२ साल की उम्र में चार्टर्ड अकाउंटेंट की कठिनतम परीक्षा में सफल हुए और ३० साल की उम्र में हिंदुस्तान के नामचीन कम्पनियों में फाइनेंस के उच्चतम पद यानि ग्रुप चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर(CFO) पर आसीन हुए| लेकिन कहते है ना की दुनिया जीत के भी हम हारे हुए ही है अगर मातृभूमि का क़र्ज़ अदा नहीं कर पाये| और देशप्रेम की इसी भावना से प्रेरित होकर न.मि.फा. व ज्ञानोदय का उदभव हुआ| ज्ञानोदय प्रोजेक्ट विगत २१ जून, २०१७ से आरंभ होकर, आज के तारीख में करीब ५०० गरीब, दलित, व महादलित बच्चों को प्रतिदिन निःशुल्क गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ग्रहण करवा रहा है| हम शिक्षा के इस अलख को वहां जगाने की बात कर रहे है जहाँ लोगों को मुश्किल से दो वक्त की रोटी का गुजारा हो पाता है, घरों में बिजली नहीं है, पीने का स्वच्छ पानी नहीं है, घरों के आस पास सड़क नहीं है..वगैरह..वगैरह.. लेकिन हम सब का पूर्ण बिश्वास है की शिक्षा ही वह सशक्त हथियार है जिससे समाज व देश को बदला जा सकता है| ज्ञानोदय की दो आधारभूत संरचना है – पहला (१): डोरस्टेप एजुकेशन (i.e. doorstep education) मतलब घर के आसपास एक ऐसा माहौल बनाना है जो बच्चो के साथ-साथ उनके अभिभावकों को भी अच्छी शिक्षा के लिए प्रेरित करें, दूसरा (२): प्लेयिंग व्हाइल लर्निंग (i.e. playing while learning) मतलब बच्चो में खेल-खेल के साथ सिखने की ललक पैदा करना| ज्ञानोदय एक मिशन के साथ चला है की आगामी ५ साल में एक लाख बच्चो को इस मुहीम से जोड़ना है।

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