“पनामा पेपर जैसे भ्रष्टाचार के मामलों में आख़िर कब तक चुप रहेगी मोदी सरकार?” – स्वराज इंडिया

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स्वराज अभियान ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया है कि पनामा पेपर और ऐसे कई भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार ने चुप्पी साध ली है। स्वराज अभियान के नेताओं ने कहा कि

•भ्रष्टाचार और कालाधन को मुद्दा बना कर सत्ता में आयी भाजपा अपने मूल वादे से मुकरी। ‘ज़ीरो टॉलोरेंस ऑन करप्शन’ साबित हुआ मोदी सरकार का एक और जुमला।

•अगस्ता वेस्टलैंड, सहारा बिड़ला डायरी से लेकर कई अन्य मामलों में भी भ्रष्टाचार के संगीन आरोप। दुनिया भर में पनामा पेपर के आधार पर जाँच और कार्यवाई, लेकिन भारत में मोदी सरकार चुप।

• कालाधन लाने के नाम पर नोटबंदी का शिगूफ़ा, हासिल कुछ नहीं। भ्रष्टाचार पर रोक लगाने वाली संवैधानिक संस्थाओं को मोदी सरकार ने किया कमज़ोर। आज तक लोकपाल की भी नियुक्ति नहीं।

•भ्रष्टाचार और कालेधन के ख़िलाफ़ हो त्वरित और ठोस राजनैतिक कार्यवाई और संस्थागत समाधान।

2014 के लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर सत्ता में आई भाजपा आज अपने ही मूल वादे से मुकर चुकी है। मोदी सरकार ने पनामा पेपर और ऐसे कई भ्रष्टाचार के मामलों में चुप्पी साध ली है। दुनिया भर में जिस पनामा पेपर के आधार पर पकडे़ गये लोगों पर कार्यवाई हो रही है, वहीं हमारे देश में ‘ज़ीरो टॉलरेंस ऑन करप्शन’ की बात करने वाली मोदी सरकार भ्रष्टाचार के ऐसे संगीन मामलों पर चुप्पी साधे बैठी है।

ग़ौरतलब है कि पनामा पेपर्स में भारत में कई मशहूर हस्तियों के नाम आये हैं। अमिताभ बच्चन का नाम पनामा पेपर्स में आया है लेकिन सरकार टैक्स चोरी के इस मामले की जाँच करने की बजाए उनको जीएसटी का प्रचारक बना रही है। इन पेपर्स में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह के बेटे और बीजेपी सांसद अभिषेक सिंह का भी नाम है, गौतम अदानी के भाई, डीएलएफ़ चेयरमैन के पी सिंह जैसे कई लोगों के नाम हैं।

ज्ञात हो कि रमण सिंह के बेटे का नाम अगस्ता वेस्टलैंड मामले में भी आया था। इस पूरे मामले को उजागर करते हुए प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने प्रेस काँफ्रेंस करके सारे दस्तावेज़ पेश किये थे। अगस्ता A-109 हेलीकॉप्टर में हुए घोटाले की जाँच को लेकर सितंबर 2016 में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता और एंटी-करप्शन क्रूसेडर प्रशांत भूषण की याचिका पर अबतक छः अलग-अलग तारीख में जस्टिस दीपक मिश्रा व् अन्य की बेंच ने सुनवाई की है।

सहारा बिड़ला डायरी के मामले में तो ख़ुद देश के प्रधानमंत्री पर ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। कलिखो पुल के सुसाईड नोट में भी न्यायपालिका से लेकर विधायिका तक के कई लोगों के ऊपर नाम लेकर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं। इसमें कांग्रेस पार्टी के भी कई लोगों के नाम हैं।

लेकिन ‘ज़ीरो टॉलेरेंस ऑन करप्शन’ भी मोदी सरकार का जुमला ही साबित हो रहा है। भ्रष्टाचार के संगीन मामलों में ग़ज़ब की चुप्पी है। किसी भी मामले में कोई जाँच नहीं, सिर्फ मामले को दबाने की कोशिश है।

मोदी सरकार ने कालाधन रोकने के नाम पर नोटबंदी किया जिसका कुप्रभाव देश आज भी झेल रहा है। लेकिन उससे कितना कालाधन आया ये बताना तो दूर, सरकार को यही नहीं पता कि नोटबंदी से कितने नोट आये। इस सरकार ने मौजूदा भ्रष्टाचार-निरोधक संवैधानिक संस्थाओं को भी कमज़ोर करने का काम किया है। लोकपाल कानून बनने के कई साल बाद भी मोदी सरकार आज तक लोकपाल नियुक्त नहीं कर पायी है। भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ लड़ाई में यह सरकार निकम्मी साबित हुई है।

स्वराज इंडिया माँग करती है कि पनामा पेपर्स में जिन लोगों के नाम आए हैं उनपर लगे आरोपों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच हो। साथ ही, अगस्ता वेस्टलैंड, सहारा बिड़ला डायरी जैसे कई मामलों में हुए भ्रष्टाचार की भी स्वतंत्र जाँच की जाए। ‘ज़ीरो टॉलेरेंस ऑन करप्शन’ सिर्फ जुमला नहीं रहे, भ्रष्टाचार का राजनैतिक और संस्थागत समाधान निकले।

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