कल रिलीज़ हुई है फिल्म ‘देसी कट्टे’, जो दो दोस्तों की कहानी है, और वे दोनों ही अच्छे निशानची हैं… बचपन से ही वे दोनों गरीबी की ज़िन्दगी जी रहे हैं, और पेट भरने के लिए देसी कट्टे बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम करते हैं… बड़े होने पर इनकी मुलाकात पूर्व मेजर से होती है , जिसकी भूमिका मे सुनील शेट्टी है
यह मेजर इन दोनों को जुर्म की दुनिया से निकालकर भारत के लिए विश्व शूटिंग प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना चाहता है… अब एक दोस्त जुर्म का रास्ता छोड़कर देश के लिए मेडल जीतने की कोशिश करता है, लेकिन दूसरा ताकत की उसी दुनिया में रहने की ठान लेता है
इस फिल्म में दोस्ती का जज़्बा है, कानपुर की पॉलिटिक्स है, प्यार है, और बुराई छोड़कर अच्छाई को अपनाने की ख्वाहिश भी है… थोड़ा एक्शन भी है, और थोड़ा ड्रामा भी… फिल्म का विषय अच्छा है, मगर अफसोस, कहानी कमज़ोर है… बल्कि मैं तो कहानी से ज़्यादा दोष दूंगा, इसके स्क्रीनप्ले को, जो मेरे हिसाब से बहुत गलत तरीके से लिखा गया है… कुछ भी कब, क्या और क्यों हो रहा है, देखकर कभी-कभी हंसी आती है… ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी भी है ‘देसी कट्टे’…
फिल्म में जय भानुशाली ने ठीक-ठाक काम किया है, लेकिन एक्शन हीरो की पहचान रखने वाले सुनील शेट्टी को ही एक्शन से दूर रखा गया है, हालांकि पूर्व मेजर के रोल में वह अच्छे लगे हैं…
‘देसी कट्टे’ में एक बात बताने की कोशिश की गई है, कि बुराई से या अच्छाई से, अगर आपमें कोई प्रतिभा आ चुकी है, तो उसका इस्तेमाल सही काम में करो… उस हुनर को देश के लिए इस्तेमाल करो.