दिल्ली डायरी !
कलम कमल की
पूरे देश में अभी नवरात्रि की धूम थी.माता के नवों रूप की पूजा में छतरपुर के कात्यायनी शक्तिपीठ में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी. तो अब आपको इस मंदिर की सैर कराना लाजिमी है.
छतरपुर मंदिर या श्री आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ दक्षिण दिल्ली के छतरपुर इलाके में स्थित है.यह देश का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर परिसर है.देवी दुर्गा के छठे स्वरूप को समर्पित यह मंदिर बेहद खूबसूरत है.यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और आसपास खूबसूरत बगीचों से घिरा हुआ है.मंदिर की नक्काशी, दक्षिण भारतीय वास्तुकला में की गई है.इस मंदिर को स्वामी नागपाल ने बनवाया था.
इस मंदिर की एक और बहुत बड़ी विशेषता है कि यह मंदिर माता के छठे स्वरूप माता कात्यायनी को समर्पित है.इसलिए इसका नाम भी कात्यायनी शक्तिपीठ रखा गया है.माता कात्यायनी के श्रृंगार के लिए यहां रोजाना दक्षिण भारत से खास हर रंगों के फूलों से बनी माला मंगवाई जाती है.यहां खास तौर पर माता का श्रृंगार रोज आपको अलग-अलग देखने मिलता है.
मां कात्यायनी का श्रृंगार यहां रोज सुबह 3 बजे से ही शुरू कर दिया जाता है, जिसमें इस्तेमाल हुए वस्त्र, आभूषण और माला इत्यादि फिर कभी दोहराए नहीं जाते हैं.यहां मां को खास तरह की फूलों की माला पहनाई जाती है, जिससे मां का स्वरूप एकदम मनोहारी लगता है, जिसमें इस्तेमाल सभी रंगों के फूल दक्षिण भारत से रोज एयरलिफ्ट कराकर मंगवाएं जाते हैं.
इस मंदिर में भगवान शिव, विष्णु, श्री गणेश, माता लक्ष्मी, हनुमान जी और सीता-राम आदि के दर्शन भी हो जाते हैं. इस मंदिर की एक खास बात है कि यह ग्रहण में भी खुला रहता है और नवरात्रि के दौरान इसके द्वार 24 घंटे अपने भक्तों के लिए खुले रहते हैं.
आपको बता दें कि राधारानी ने श्रीकृष्ण को पाने के लिए माँ दुर्गा के इस शक्तिपीठ की पूजा की थी।
अपने छठे रूप माता कात्यायनी की प्रतिमा रौद्र स्वरूप में दिखाई देती है.माता के एक हाथ में चण्ड-मुण्ड का सिर और दूसरे में खड्ग है.तीसरे हाथ में तलवार है और चौथे हाथ से मां अपने भक्तों को अभय प्रदान करती हुई दिखाई देती हैं.
कहा जाता है कि पौराणिक कथा के अनुसार, एकबार कात्यायन ऋषि ने माँ दुर्गा की तपस्या की थी.ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर माता दुर्गा ने वरदान मांगने को कहा.ऋषि ने कहा कि आप मेरे यहां पुत्र बनकर जन्म लीजिए, मुझे आपका पिता बनने की इच्छा है.माता ने प्रसन्न होकर वरदान दे दिया और ऋषि के घर जन्म लिया.कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी रखा गया.
वैसे तो यह मन्दिर विशाल है पर मुख्य मंदिर के सामने स्थित शिव परिवार और नागपाल बाबा की समाधि भव्यता का बोध कराती है.भगवान शिव का त्रिशूल और हनुमान जी की इतनी ऊँची मूर्ति शायद ही अन्यत्र कहीं पर मौजूद हो.
यहाँ जाने के लिए छतरपुर मेट्रो स्टेशन से पैदल ही या 10 रुपये रिक्शा को देकर जा सकते हैं.
छतरपुर मेट्रो स्टेशन तक बस की भी बहुत अच्छी व्यवस्था है.615 , 617 , 534 , 604 सहित क़ई बस यहाँ से गुजरती है.
इस मंदिर की एक और विशेषता है कि इसमें प्रवेश के लिए धर्म का कोई बंधन नहीं है. यह मंदिर हर धर्म के लिए खुला है.