पटना 13.07.2017, तेजस्वी यादव को भाजपा ने नहीं बल्कि लालू प्रसाद ने अपने भ्रष्टाचार में साझीदार बना कर फंसा दिया। तेजस्वी यादव ने कम से कम इतना तो स्वीकार कर लिया है कि उनके पिता लालू प्रसाद द्वारा 2004 में घोटाला किया गया था। कोई व्यक्ति खुद नहीं उसकी ईमानदारी की सर्टिफिकेट तो जनता देती है। मंत्री बन जाने से तेजस्वी यादव को मंत्री बनने से पहले के भ्रष्टाचार की माफी नहीं मिल जाती है।
हकीकत है कि अगर लालू प्रसाद ने रेलमंत्री के नाते रेलवे के दो होटल के बदले डिलाइट मार्केटिंग के माध्यम से पटना में 3 एकड़ जमीन नहीं ली होती तो तेजस्वी यादव नहीं फंसते। अगर 26 वर्ष के तेजस्वी यादव को लालू प्रसाद अपने करीबी प्रेमचन्द गुप्ता की कम्पनी का साझीदार नहीं बनाया होता, सुरसंड के राजद विधायक अब्बु दोजाना से सांठगांठ कर अगर तेजस्वी की जमीन पर नियम-कानून की अवहेलना कर 750 करोड़ के माॅल का निर्माण नहीं शुरू कराया होता, माॅल की मिट्टी को पटना जू में नहीं खपाया होता और तेजस्वी के नाम पर दिल्ली के पाॅष न्यू फ्रेंड्स काॅलोनी में 115 करोड़ की परिसम्पति नहीं बनाया होता तो तेजस्वी यादव नहीं फंसते।
तेजस्वी यादव को प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बना कर जब तक निर्दोष प्रमाणित नहीं हो जाते हैं तब तक के लिए इस्तीफा दे देना चाहिए। जदयू के अल्टीमेटम के 72 घंटे बाद भी राजद और तेजस्वी इस्तीफा नहीं देने पर अड़े हुए हैं, ऐसे में चार घंटे में जीतन राम मांझी से इस्तीफा लेने वाले मुख्यमंत्री को और इंतजार करने के बजाय उन्हें अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर देना चाहिए।