खान पान पर नियंत्रण से किडनी सम्बन्धी समस्याओ का निदान –डॉ पंकज हंस

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पटना:-.9 मार्च विश्व किडनी दिवस के अवसर पर आज राजधानी पटना के होटल पाटलिपुत्र अशोक में प्रसिद्ध किडनी रोग बिशेसज्ञ डॉ पंकज हंस मीडिया से रूबरू हुए .  डॉ हंस ने कहा  कि ऐसे लोग जिन्हें डायबीटीज, हाई ब्लड प्रेशर, एथरोस्क्लेरोटिक हार्ट डिजीज, पेरिफरल वस्कुलर डिजीज है और किडनी फेलियर का उनका पारिवारिक इतिहास है तो उनमें गुर्दा खराब होने का खतरा काफी ज्यादा रहता है। गुर्दा खराब होने के शुरुआती चरण में कोई भी लक्षण सामने नहीं आता है-यह साइलेंट रहता है। यही वह चरण होता है जब बीमारी का इलाज पूरी तरह संभव होता है, ऐसे में शुरुआती दौर में जांच और इलाज बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर इसका वक्त पर इलाज नहीं किया गया तो आगे चलकर किडनी फेल हो सकती है। किडनी या गुर्दे की बीमारी को ‘साइलेन्ट किलर’ भी कहा जाता है। क्योंकि प्रथम अवस्था में कभी भी इसका पता नहीं चलता है।किडनी शरीर का एक ऐसा अंग होता है जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को छानकर मूत्र के रूप में निकालने में मदद करता है। इसमें खराबी मतलब पूरे शरीर के कार्य में बाधा उत्पन्न होना,  इसलिए किडनी को स्वस्थ रखना बहुत ज़रूरी होता है। लेकिन आज के आधुनिक युग की जीवनशैली के कारण किडनी की बीमारी होने का खतरा बढ़ गया है। इससे बचने के लिए सबसे पहले ज़रूरी है  बारे में जानना-
• मूत्र की मात्रा या तो बढ़ जाती है या कम हो जाती है
• मूत्र का रंग गाढ़ा हो जाता है
• बार-बार मूत्र होने का एहसास होता है मगर करने पर नहीं होता है
• रात को मूत्र की मात्रा या तो कम हो जाती है या कम
• मूत्र का त्याग करने के वक्त दर्द होना
• मूत्र में रक्त का आना
• झाग (foam) जैसा मूत्र
• पैर, हाथ और चेहरे में सूजन  आदि ।
यह तो किडनी के बीमारी के आम लक्षण हैं जिसका थोड़ा भी एहसास होने पर तुरन्त इसकी जाँच करवायें। और चिकित्सक के सलाह के अनुसार इलाज करना शुरू करें नहीं तो समय के साथ स्थिति खराब होती जाती है। पिछले कुछ वर्षो में भारत में क्रॉनिक किडनी डिजीज यानी गुर्दे खराब होने की समस्या तेजी से बढ़ी है। शुरुआती दौर में जांच और प्रबंधन से बीमारी को गंभीर होने से रोका जा सकता है और ऐसे में इलाज के परिणाम भी अच्छे आते हैं।आयोजित प्रेस वार्ता में जनसंपर्क अधिकारी अनूप नारायण सिंह भी उपस्थित थे ।

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